बिजोलिया किसान आंदोलन
- राजस्थान में संगठित जन-जागृति करने का श्रेय बिजोलिया किसान आंदोलन को जाता है
- बिजोलिया का सबसे प्राचीन नाम विजयाबल्ली है
- अशोक परमार द्वारा संस्थापित बिजोलिया मेवाड़ राज्य का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था
- अशोक परमार का मूल निवास स्थान जगनेर (भरतपुर) (वर्तमान में उत्तर प्रदेश के आगरा जिले का जगनेर) था, जहां से वह मेवाड़ के राणा सांगा की शरण में चित्तौड़ आ गया|
- अशोक परमार ने राणा सांगा के साथ 1527 ईस्वी में खानवा युद्ध में बाबर की सेना के विरुद्ध अपूर्ण साहस का परिचय दिया था
- सांगा ने अशोक परमार की वीरता से प्रभावित होकर उसे 256 वर्ग किलोमीटर में फैला ऊपरमाल की जागीर प्रदान की जिसका बिजोलिया सदर मुकाम था
- 19वीं शताब्दी के आरंभ में अंग्रेजों से हुई संधि के फलस्वरूप राजस्थान के राजा बाहरी आक्रमणों मराठों व पिंडारीयों के आतंक से मुक्त पाकर स्वेच्छाचारी हो गए तथा स्वच्छंद ऐसो आराम की जिंदगी बिताने के लिए यह राजा महाराजा तथा उनके जागीरदार जनता पर विभिन्न प्रकार के कर लगाते गए जिससे किसानों का शोषण शोषण उन पर अत्याचार और बेगारी का आलम अधिक बढ़ गया
- राजाओं-महाराजाओं और जागीरदारों के इस स्वेच्छाचारी आचरण से किसानों में असंतोष बढ़ गया जिसका पहला विस्फोट सन 1897 ईस्वी में मेवाड़ के जागीर क्षेत्र बिजोलिया में हुआ
- राव कृष्ण सिंह के समय बिजोलिया जागीर से भारी लगान के अलावा 84 प्रकार की लागते तथा बाग-बेगारी ली जाती थी
- सन 1897 ईस्वी में बिजोलिया के किसानों ने गिरधारीपुर नामक गांव में किसानों ने नानजी पटेल और ठाकरे पटेल को उन पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों की शिकायत करके महाराणा के पास उदयपुर भेजा मगर महाराणा ने उनकी शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की |
- यह आंदोलन 1897 ईस्वी में ही प्रारंभ हो गया था 1916 ईस्वी के बाद विजय सिंह पथिक ने इसका नेतृत्व किया |
- भारत में संगठित कृषक आंदोलन प्रारंभ करने का श्रेय मेवाड़ को है|
- बिजोलिया किसान आंदोलन 1897 ईस्वी से 1941 ईस्वी तक चला बिजोलिया मेवाड़ रियासत का ठिकाना था यह किसान आंदोलन सबसे लंबे समय तक चला था अहिंसात्मक है|
- बिजोलिया ठिकाने में 84 प्रकार के कर लिए जाते थे इनके अतिरिक्त किसानों से लागबाग एवं बेगार भी ली जाती थी|
- तुलसी भील बिजोलिया आंदोलन में किसान का एक असाधारण संदेशवाहक था|
- धाकड़ इस जाति के किसान यह सर्वाधिक संख्या में थे|
- कुंता बिजोलिया ठिकाने में भूमि कर निश्चित करने की प्रथा थी|
- विजय सिंह पथिक ने चित्तौड़ के समीप ओछड़ी गांव में किसानों के बीच कार्य करने करते हुए विद्या प्रचारिणी सभा की स्थापना की |
- 1916 में पथिक, माणिक्य लाल वर्मा व साधु सीताराम के सहयोग से विद्या प्रचारिणी सभा के माध्यम से बिजोलिया के किसानों को संगठित किया|
- बिंदु लाल भट्टाचार्य आयोग (1919वी) ने बिजोलिया किसान आंदोलन में बूंदी किसान को मुक्त किया|
- राजस्थान केसरी 1920 में पथिक जी ने इस अखबार के माध्यम से किसानों की आवाज देशवासियों तक पहुंचाई थी|
- पथिक ने बिजोलिया किसान आंदोलन को भारतीय स्तर लोकप्रिय प्रताप नामक समाचार पत्र के माध्यम से बनाया, जिस के प्रकाशक गणेश शंकर विद्यार्थी थे तथा कानपुर से प्रकाशित होता था|
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