Monday, September 6, 2021

गुर्जर प्रतिहार

 गुर्जर प्रतिहार

  • उत्तरी-पश्चिमी भारत में गुर्जर प्रतिहार वंश का शासन मुख्यतः आठवीं से 10वीं सदी तकरहा। प्रारंभ में इनकी शक्ति का मुख्य केंद्र मारवाड़ था। उस समय राजपूताना का यह क्षेत्र गुर्जराजा (गुर्जर प्रदेश ) कहलाता था। गुर्जर क्षेत्र के स्वामी होने के कारण प्रतिहारों को गुर्जर प्रतिहार कहा जाने लगा था। इसी कारण तत्कालीन मंदिर स्थापत्य की प्रमुख कला शैली को गुर्जर-प्रतिहारशैली की संज्ञा दी गई है।
  •  आठवीं से दसवीं सदी तक राजस्थान के गुर्जर प्रतिहारों की तुलना में कोई प्रभावी राजपूत वंश नहीं था। इनका आधिपत्य न केवल राजस्थान के पर्याप्त भाग पर था बल्कि सुदूर कन्नौज एवं बनारस तक भी था। राजस्थान में गुर्जर-प्रतिहारों की दो शाखाओं का अस्तित्व था

(1) मंडोर शाखा (2) भीनमाल (जालौर) शाखा

 राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारों की प्रारंभिक राजधानी मंडोर (जोधपुर) थी। - प्रतिहार शासक नागभट्ट प्रथम ने आठवीं शताब्दी में भीनमाल पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया। घटियाला शिलालेख के सार नागभट्ट प्रथम ने राज्य की सीमा का विस्तार कर मेडान्तक (मेड़ता) को अपनी राजधानी बनाया। बाद में इन्होंने उज्जैन को अपने अधिकार में कर लिया एवं उज्जैन इनकी शक्ति का प्रमुख केन्द्र हो गया। नागभट्ट प्रथम के उत्तराधिकारी कक्कुक एवं देवराज थे, परन्तु इनका शासनकाल महत्त्वपूर्ण नहीं था।


वत्सराज (778-805 ई.) : देवराज का पुत्र वत्सराज गुर्जर प्रतिहार वंश - का प्रतापी शासक हुआ। उसने माण्डी वंश को पराजित किया तथा बंगाल के धर्मपाल को भी पराजित किया। वत्सराज को 'रणहस्तिन्' कहा गया है।


● नागभट्ट द्वितीय (805-833 ई.) : वत्सराज का उत्तराधिकारी उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय सन् 815 में गद्दी पर बैठा। उसने 816 ई. में कनौज पर आक्रमण कर चक्रायुद्ध (धर्मपाल द्वारा नामजद शासक) को पराजित किया तथा कन्नौज को प्रतिहार वंश की राजधानी बनाया तथा 100 वर्षों से चले आ रहे त्रिपक्षीय संघर्ष ('कन्नौज' नगर पर अधिकार हेतु 100 वर्षों तक गुर्जर प्रतिहारों, बंगाल के पालों एवं दक्षिण राष्ट्रकूटों के मध्य अनवरत संघर्ष को समाप्त किया। उसने बंगाल के पाल शासक धर्मपाल को पराजित कर मुंगेर पर अधिकार कर लिया। उसके समय प्रतिहार उत्तरी भारत का

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